15-04-92  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

ब्राह्मणों की दो निशानियाँ - निश्चय और विजय

अव्यक्त बापदादा निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्माओं प्रति बोले :

आज बापदादा चारों ओर के ब्राह्मण बच्चों की विशेष दो निशानियाँ देख रहे हैं। ब्राह्मण अर्थात् निश्चयबुद्धि और निश्चयबुद्धि अर्थात् विजयी। तो हर एक ब्राह्मण निश्चयबुद्धि कहाँ तक बने हैं और विजयी कहाँ तक बने हैं! क्योंकि ब्राह्मण जीवन का फाउन्डेशन है निश्चय और निश्चय का प्रमाण है विजय। तो निश्चय और विजय दोनों की परसेन्टेज एक है या अन्तर है? रिजल्ट क्या देखी होगी? निश्चय की परसेन्टेज सभी ज्यादा अनुभव करते हैं और विजय की परसेन्टेज निश्चय से कम अनुभव करते हैं। जब किसी से भी पूछते हैं कि निश्चय कितना है तो सभी कहते हैं 100%, और निश्चय की निशानी विजय कितनी है? उसमें 100% कहेंगे? आपका स्लोगन निश्चयबुद्धि विजयन्ती। फिर निश्चय और विजय में अन्तर क्यों? निश्चय और विजय दोनों निशानियाँ समान होनी चाहिए ना? लेकिन अन्तर क्यों है? इसका कारण क्या? कोई भी फाउन्डेशन जब पक्का किया जाता है तो उस स्थान को चारों आर अटेन्शन देकर पक्का किया जाता है। अगर चारों ओर में से एक कोना भी कमज़ोर रह जाए तो पक्का रहेगा या हिलता रहेगा? ऐसे ही निश्चय का फाउन्डेशन चारों ओर अर्थात् विशेष चार बातों का सम्पूर्ण निश्चय चाहिए। वह चार बातें पहले भी सुनाई हैं:-

एक तो बाप में सम्पूर्ण निश्चय। जो है, जैसा है, जो श्रीमत जैसे बाप की दी हुई है, उसी विधिपूर्वक यथार्थ जानना और मानना और चलना।

दूसरी बात - अपने श्रेष्ठ स्वमान सम्पन्न श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा स्वरूप को जानना, मानना और चलना।

तीसरी बात - अपने श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार को यथार्थ विधि से जो जैसा है वैसे जानना, मानना और चलना।

चौथी बात - सारे कल्प के अन्दर इस श्रेष्ठ पुरूषोत्तम युग वा समय को उसी महत्त्व से जानना, मानना और चलना। इन चार बातों में जो अटल निश्चयबुद्धि हैं और चारों में सम्पन्न परसेंटेज है तो उसको कहेंगे सम्पूर्ण यथार्थ निश्चयबुद्धि।

यह चारों ही निश्चय के फाउन्डेशन के स्तम्भ है। सिर्फ एक बाप में निश्चय है और तीनों बातों में से कोई भी स्तम्भ कमज़ोर है, सदा मजबूत नहीं है, कभी हिलता कभी अचल होता है, तो वह हलचल हार खिलाती है, विजयी नहीं बनाती। कोई भी हलचल कमज़ोर बना देती है और कमज़ोर सदा विजयी बन नहीं सकता। इसलिए निश्चय और विजय में अन्तर पड़ जाता है। बापदादा के सामने बहुत बच्चें अलबेले बन करके रूहरूहान करते हैं, कि हमें निश्चय तो पूरा है, बाबा मैं आपको और आप मेरे हो, यह पक्का है, 100% तो क्या 500% निश्चय है..। लेकिन हलचल भी है। फिर मनाने के लिए कहते हैं - आप तो हमारे हो ना, पक्का कराते हैं। बहुत भोली बातें करते हैं - मैं जो हूँ, जैसी हूँ, आपकी या आपका हूँ। तो बाप भी कहते हैं आप जो हो, जैसे हो, मेरे हो। लेकिन बाप जो है जैसा है आपका है? भोला बनना अच्छा है, दिल से भोले बनो, लेकिन बातों में और कर्म में भोले नहीं बनो। दिल के भोले भोलानाथ के प्यारे हैं। बातों में भोले स्वयं को भी धोखा देते तो दूसरों को भी धोखा दे देते और कर्म के भोले अपना भी नुकसान करते हैं तो सेवा का भी नुकसान करते हैं। इसलिए दिल से भोले बनो, बिल्कूल सेन्ट, ऐसे भोले। सेन्ट (Saint) अर्थात् महान आत्मा। लेकिन बातों में त्रिकालदर्शी बन करके बात सुनो और बोला। कर्म में, हर कर्म के परिणाम को नॉलेजफुल होकर जानो और फिर करो। ऐसे नहीं कि होना तो नहीं चाहिए था लेकिन हो गया, बोलना नहीं चाहिए था लेकिन बोल लिया। इससे सिद्ध है कि कर्म के परिणाम को न जान भोलेपन में कर्म कर लेते हो। ऐसे नहीं समझो कि हम भोले हैं इसीलिए ऐसे हो जाता है - ऐसे अपने को छुड़ाना नहीं है। दिल का भोला सबका प्यारा होगा। तो समझा भोला किसमें बनना है? तो निश्चय और विजय को समान बनाने की विधि क्या हुई? चारों तरफ, चारों बातों का समान परसेंटेज वाला निश्चय हो। कई बच्चे और क्या कहते हैं कि बाबा आप में तो निश्चय है लेकिन अपने आप में इतना निश्चय नहीं है। कभी होता है, कभी अपने में निश्चय कम हो जाता है। फिर उन्हों की भाषा क्या होती है? एक ही गीत गाते हैं। पता नहीं , पता नहीं, पता नहीं..। पता नहीं ऐसे क्यों होता है, पता नहीं मेरा भाग्य है, पता नहीं बाप की मदद मिलेगी वा नहीं, पता नहीं सफलता होगी वा नहीं। जब मास्टर सर्वशक्तिवान हो तो इस निश्चय में कमी है तब पता नहीं, पता नहीं का गीता गाते हो। और तीसरे फिर क्या कहते हैं? कि बाबा हमने तो आपको देख करके सौदा किया। आप हमारे हो हम आपके हैं। इस ब्राह्मण परिवार से हमने सौदा नहीं किया। ब्राह्मण परिवार खिटखिट है, आप ठीक हो। ब्राह्मणों के संगठन में चलना मुश्किल हैं, एक आपसे चलना सहज है। तो बापदादा क्या कहेंगे? बापदादा मुस्कराते हैं, ऐसे बच्चों से बापदादा का एक प्रश्न है क्योंकि ऐसी आत्माएं प्रसन्न-चित्त नहीं रहती, प्रश्न बहुत करती है, ये ऐसा क्यों, ऐसा होता है क्या, तो वह प्रसन्न-चित्त आत्मा नहीं है, प्रश्न चित्त आत्मा है। बापदादा भी उन्हों से प्रश्न करते हैं कि आप आत्मा मुक्तिधाम में रहने वाली हो या जीवनमुक्ति में आने वाली हो? मुक्ति में रहना है फिर जीवनमुक्ति में आना है ना। तो जीवनमुक्ति में सिर्फ बाबा ब्रह्मा होगा या राजधानी होगी? सिर्फ ब्रह्मा और सरस्वती राजा रानी होंगे? जीवनमुक्ति का वर्सा पाना है ना। आप लोग चैलेन्ज करते हो कि आदि सनातन धर्म और अन्य धर्म में सबसे बड़ा अन्तर है। वो सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं, और आप धर्म और राज्य दोनों की स्थापना कर रहे हो। यह पक्का है ना। धर्म की स्थापना और राज्य की भी स्थापना कर रहे हो ना, तो राज्य में क्या होगा? सिर्फ एक राजा, एक रानी होंगे? एक राजा रानी और आप एक बच्चा या बच्ची, बस। ऐसा राज्य होता है? तो हमें राजधानी में आना है। यह याद रखो। राजधानी में आना अर्थात् ब्राह्मण परिवार में सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना, श्रेष्ठ सम्बन्ध में आना। अभी बापदादा पूछेंगे सभी से कि आप माला में आने चाहते हो? या कहेंगे माला से बाहर रह गये हो तो भी ठीक है, हर्जा नहीं है। माला में आना है। चाहे 108 में आओ चाहे 16000 में आओ। लेकिन आना है वा नहीं। (हाँ जी) फिर अभी ब्राह्मण परिवार से क्यों घबराते हो? जब कोई बात होती है तो क्यों कहते हो हमारा तो बाबा है। बहनें क्या करेंगी भाई क्या करेंगे? हमने भाई-बहनों से वायदा नहीं किया है, लेकिन यह ब्राह्मण जीवन शुद्ध सम्बन्ध का जीवन है, माला की जीवन है। माला का अर्थ ही है संगठन। ब्राह्मण परिवार के निश्चय में अगर कोई संशय आ जाता है, व्यर्थ संकल्प आ जाता है तो वह निश्चय को डगमग कर देता है। हलचल में लाता है। बाबा अच्छा, ज्ञान अच्छा, लेकिन ये दादियाँ अच्छी नहीं, टीचर्स अच्छी नहीं, परिवार अच्छा नहीं..। यह निश्चयबुद्धि के बोल हैं? उस समय निश्चयबुद्धि कहें कि संकल्प बुद्धि कहें? व्यर्थ संकल्प प्रसन्नचित्त बुद्धि रहने नहीं देते, तो समझा निश्चय की विशेषता क्या है? चौथी रूररिहान क्या करते हैं? वह फिर कहते कि समय श्रेष्ठ है, पुरूषोत्तम युग है, आत्मा परमात्मा के मेले का युग है यह सब मानते हैं फिर क्या कहते? अभी थोड़ा समय तो है ही, इतने में विनाश तो होना नहीं है, यह तो स्थापना के समय से कहते आये हैं कि विनाश होना है। दूसरी दीवाली नहीं आनी है। तो विनाश की बाते तो स्थापना के समय से चल रही हैं। विनाश कहते-कहते कितने वर्ष हो गये। अभी भी पता नहीं विनाश कब हो! थोड़ा सा अलबेले के, आलस्य के, ढीले पुरूषार्थ के डनलप के तकियें में आराम कर लें। समय पर ठीक हो जायेंगे। बाप को भी यह पक्का कराते हैं कि आप देखना हम समय पर बहुत नम्बर आगे ले लेंगे। लेकिन बापदादा ऐसे बच्चों को सदा सावधान करते हैं कि समय पर जागे और समय प्रमाण परिवर्तन किया तो यह कोई बड़ी बात नहीं हैं। लेकिन समय के पहले परिवर्तन किया तो आपके पुरूषार्थ में यह पुरूषार्थ की मार्क्स जमा होगी और अगर समय पर किया तो समय को मार्क्स मिलेगी आपको नहीं मिलेगी। तो टोटल रिज़ल्ट में अलबेले या आलस्य के नींद के कारण धोखा खा लेंगे। यह भी कुम्भकरण के नींद का अंश है। बड़ा कुम्भकरण नहीं है, छोटा है। फिर उसको क्या हुआ? अपने को बचा सका? नहीं बच सका ना! तो अन्त समय में भी अपने को फुल पास के योग्य नहीं बना सकेंगे। समझा! कभी कैसी रूहरूहान करते हो, कभी बहुत हिम्मत की भी करते हो, कभी नाज़-नखरे की करते हो और कभी खिटपिट की करते हो।

आज इस वर्ष के सीज़न का सम्पन्न है। समाप्ति नहीं कहेंगे, सम्पन्न हो रहा है। इसलिए रिज़ल्ट सुना रहे हैं। तो अभी क्या करना है? चेक करो कि निश्चय के फाउन्डेशन के चारों ओर मज़बूत है या चारों में से कोई भी बात में मज़बूत होने के बजाए बातों के कारण मजबूर है। यह चेक करो। अभी फिर तपस्या करनी है ना। पहले भी सुनाया कि प्यार का सबूत देना है और प्यार को सबूत है समान बनना। और दूसरी बात क्या करनी है। यह वर्ष का होम वर्क दे रहे हैं। एक वर्क तो सुना। दूसरी बात - अपने चारों ओर के फाउन्डेशन को पक्का करो। एक भी बात में कमज़ोरी नहीं हो तभी माला के मणके बन पूज्य आत्मा वा राज्य अधिकारी आत्मा बनेंगे। क्योंकि ब्राह्मण सो देवता बनना है। सिवाए ब्राह्मण के देवता नहीं बन सकते हैं। ब्राह्मणों से निभाना अर्थात् दैवी राज्य के अधिकारी बनना। तो परिवार से निभाना पड़ेगा। हलचल को समाप्त करना पड़ेगा। तब निश्चय और विजय दोनों की समानता हो जायेगी। यह अन्तर मिटाने का महामन्त्र है। चारों ओर मज़बूत होना। चार ही निश्चय की परसेन्टेज समान बनाना है। समझा! होमवर्क स्पष्ट हुआ ना। अच्छे स्टूडेन्ट हो ना या कहेंगे कि अपने सेन्टर के होम में गये, प्रवृत्ति के होम में गये तो होम में ही होम वर्क रखकर आये। ऐसे तो नहीं कहेंगे ना। होशियार स्टूडेन्ट की निशानी क्या होती है? होम वर्क में भी नम्बरवन, तो प्रैक्टिकल पढ़ाई में भी नम्बरवन। क्योंकि मार्क्स जमा होती है। अच्छा और क्या रिजल्ट देखी? वर्तमान समय बच्चों की दो होशियारी देखीं। अपनी होशियारी तो जानते होंगे ना? पहली होशियारी क्या देखी? स्व को देखना और पर को देखना। स्वदर्शन चक्रधारी बनना या पर दर्शन चक्रधारी बनना। दो बातें हैं ना। मैजारिटी किस में होशियार हैं? बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि कई बच्चों की नजदीक की नज़र बहुत तेज हो रही हैं और कई बच्चों की फिर दूर की नज़र बहुत तेज हो रही है। लेकिन मैजारिटी की दूर की नज़र तेज है, नजदीक की नज़र कुछ ढीली है। देखना चाहते हैं लेकिनि स्पष्ट देख नहीं पाते हैं और फिर होशियारी क्या करते हैं? कोई भी बात होगी तो अपने को सेफ रखने के लिए दूसरों की बात बड़ी करके स्पष्ट सुनायेंगे। अपनी बड़ी बात को छोटा करेंगे और दूसरे की छोटी बात को बड़ा करेंगे यह होशियारी मैजारिटी की देखी। दूसरी होशियारी क्या देखी? आजकल एक विशेष भाषा बहुत यूज़ करते हैं कि हमसे असत्य देखा नहीं जाता, असत्य सुना नहीं जाता, इसलिए असत्य को देख झूठ को सून करके अन्दर में जोश आ जाता है। तो यह भाषा राईट है? अगर वह असत्य है और आपको असत्य को देख जोश आता है तो जोश सत्य है या असत्य है? जोश भी तो असत्य है ना! हम यह करके दिखायेंगे, यह चैलेन्ज करना राइट है? यह सदैव याद रखो कि सत्यता की निशानी क्या है! जो स्वयं सत्यता पर है और असत्य को खत्म करना चाहता है, लक्ष्य तो बहुत अच्छा है लेकिन असत्यता को खत्म करने के लिए अपने में भी सत्यता की शक्ति चाहिए। आवेशता या जोश यह सत्यता की निशानी है? सत्यता में जोश आयेगा? तो अगर झूठ को देख करके मुझे गुस्सा आता है, तो राईट है? कोई आग लगायेगा तो सेक नहीं आयेगा कि सेक प्रुफ हो सकते हैं? अगर हमें नॉलेज है कि यह असत्यता की आग है और आग का सेक होता है तो पहले अपने को सेफ करेंगे ना कि सेक में थोड़ा सा जल भी जाए तो चलेगा, हर्जा नहीं। तो सदैव यह याद रखो कि सत्यता की निशानी है सभ्यता। अगर आप सच्चे हो, सत्यता की शक्ति आपमें है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ेंगे, सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्ण। अगर सभ्यता को छोड़-कर असभ्यता में आकर के सत्य को सिद्ध करना चाहते हो तो वह सत्य सिद्ध नहीं होगा। आप सत्य को सिद्ध करना चाहते हो लेकिन सभ्यता को छोड़ करके अगर सत्यता को सिद्ध करेंगे तो जिद्द हो जायेगा। सिद्ध नहीं। असभ्यता की निशानी है जिद और सभ्यता की निशानी है निर्माण। सत्यता को सिद्ध करने वाला सदैव स्वयं निर्माण होकर सभ्यतापूर्वक व्यवहार करेगा। समझा - दूसरी होशियारी! ऐसे होशियार नहीं बनना। तो यह भी होमवर्क है कि ऐसे होशियारी को छोड़कर निर्माण बनो। बिल्कूल निर्माण। मैं राईट हूँ, यह रांग है यह निर्माणता नहीं है। दुनिया वाले भी कहते हैं कि सत्य को अगर कोई सिद्ध करता है तो कुछ न कुछ समाया हुआ है। कई बच्चों की भाषा हो गई है मैं बिल्कुल सच बोलता हूँ, 100% सत्य बोलता हूँ। लेकिन सत्य को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। सत्य ऐसा सूर्य है जो छिप नहीं सकता। चाहे कितनी भी दीवारें कोई आगे लाये लेकिन सत्यता का प्रकाश कभी छिप नहीं सकता। सच्चा आदमी कभी अपने को यह नहीं कहेगा कि मैं सच्चा हूँ। दूसरा कहे कि आप सच्चे हो और भी हंसी के बात सुनाएं? सुनने का इन्टरेस्ट अच्छा है। करने का भी है ना?

बापदादा को एक बात पर बड़ी हंसी आती है। वर्तमान समय कई बच्चों के समाचार आते हैं? बाप को भी चैलेन्ज कर रहे हैं कि बापदादा ने कहा है ना कि टीचर्स को चेन्ज करेंगे अभी देखेंगे बाबा क्या करता है? जो कहा है वह करता है या नहीं करता है। बाप ने कहा है तो बाप पर है। बाप करे या न करे। या ऐसे चैलेन्ज करनी है कि कहा है तो करना ही है। बाप को जो करना है वह न किसके कहने से करेंगे। वा किसके ना कहने से नहीं करेंगे। लेकिन बाप को भी चैलेन्ज के बहुत अच्छे पत्र आते हैं। जो टीचर्स से नाराज है उन्हों को यह चांस बड़ा मिल गया है। कल्याणकारी बाप हर कार्य में जो भी करेगा वह कल्याणकारी ही होता है। यह भूल जाते हैं फिर डायरेक्शन के पत्र लिख रहे हैं कि आप जरूर करना, बाप के भी शिक्षक बहुत बन गये ना तो बाप अपने ऐसे बच्चों को भी मुबारक देते हैं। लेकिन सदा संयम में स्वयं को आगे बढ़ाते चलो। सभ्यता पूर्वक बोल, सभ्यता पूर्वक चलन, इसमें ही सफलता होती है। अगर सत्यता है और सभ्यता नहीं है तो सफलता नहीं मिलती है। और सफलता नहीं मिलती तो और जोश में आते हैं। और जब जोश में कोई होश नहीं रहता। क्या कर रहे हैं, क्या कह रहे हैं वह भी होश नहीं आता और जब होश नहीं होता तो माया को चांस मिल जाता है बेहोश करने का। इसलिए अगर कोई असत्य बात देखते भी हो, सुनते भी हो तो असत्य वायुमण्डल नहीं फैलाओ। कई कहते हैंक यह पाप कर्म है ना पाप कर्म देखा नहीं जाता और स्वयं वायुमण्डल में असत्यता की बाते फैलाना यह क्या है? इसको क्या कहेंगे? पुण्य कर रहे हैं ना वे, असत्य देखा वा सुना, फिर भी परिवार है, लौकिक परिवार में भी अगर कोई ऐसी बात देखी जाती है, सुनी जाती है तो क्या किया जाता है?फैलाया जाता है? अखबार में डाला जाता है? कि कान में सुना और दिल में छिपाया। तो यह भी व्यर्थ बातों का फैलाव करना यह भी पाप का अंश है। यह छोटे-छोटे पाप जो होते हैं वह अपनी उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं। क्योंकि सबसे भारी ते भारी है पाप। अगर पाप का अंश भी है तो उड़ेगा कैसे? बोझ वाला उड़ेगा? आजकल बहुत रॉयल भाषा में फैलाव करते हैं। कहते हैं यह नया समाचार लाया हूँ। आप तो बहुत बुद्धू हो आपको कोई समाचार का पता नहीं पड़ता। हम देखो नॉलेजफुल हैं कितने समाचार का पता है। ऐसे समाचार सुनने वालों के ऊपर भी पाप और सुनाने वाले के ऊपर और ज्यादा पाप। इसीलिए तपस्या वर्ष में यह सूक्ष्म पापों का बोझ समाप्त रो तब समान बन सकेंगे। नहीं तो सोचते हैं कि हमने तो कोई गलती की नहीं लेकिन यह रॉयल गलती बहुत करते हैं। इसको रॉयल समझते हैं। मैंने सुना तो ऐसे ही सुना दिया। भाव कोई नहीं था मेरा। लेकनि रिजल्ट क्या है। फैलाना अर्थात् बोझ के अधिकारी बनना। तो आजकल यह भी एक रिवाज हो गया है। आपस में मिलेंगे ना तो पहले तो समाचार सुनायेंगे, नये नये समाचार। कहेंगे किसको सुनाना नहीं सिर्फ आपको ही सुना रहे हैं। लेकिन बाप ने तो सुना। रजिस्टर में दाग तो हुआ या नहीं? इसलिए इस बात का भी अटेन्शन अन्डरलाइन करो। ऐसे नहीं समझो कि बापदादा को पता हीं नहीं पड़ता। दादियाँ तो कोने में बैठी हैं उनको क्या पता। दादियों को नहीं पता लेकिन आपके रजिस्टर में आटोमेटिक नोट हो जाता है। जब आजकल के कम्प्युटर में सारा रिकार्ड भर जाता है तो क्या आपके रजिस्टर में आटोमेटिक यह रिकार्ड भर नहीं जायेगा। दादियाँ नहीं देखती, और नहीं देखते लेकिन रजिस्टर देख रहा है। तो ऐसा परिवर्तन करो। क्योंकि बापदादा ने रिजल्ट में देखा कि तपस्या पॉवरफुल न होने का कारण क्या है? सदा विजयी बनने में विघ्न रूप क्या है? इन विघ्नों को स्वयं से समाप्त करो। दूसरा बदले तो मैं बदलूं, इनको चेंज करो तो हम चेंज होंगे, यह भाषा यथार्थ है? बड़ों के आगे बात रखना इसके लिए सबको हक है लेकिन सत्यता और सभ्यता पूर्वक।

अब कितने होम वर्क मिले। इस वर्ष में ऐसे कोई रजिस्टर में सूक्ष्म दाग भी नहीं आने चाहिए। तब बाप कहेगा कि हाँ बाप से प्यार है, नहीं तो समझते हैं कि यह बाप को भी खुश करते हैं, अपने को भी खुश करते हैं। व्यर्थ समाचार बिल्कुल समाप्त होने चाहिए। यह एक हॉबी बहुत बढ़ती जा रही है। और यही तपस्या का विघ्न है। हर एक समझे कि इस हॉबी को स्वयं में समाप्त करने की मैं जिम्मेवारी लूँ। समझा! दूसरे कर रहे थे, तो मैंने भी कर लिया, चार बोल रहे थे तो मैंने भी एक शब्द बोल दिया। तो क्या यह राईट है? इस शौक को खत्म करने की हिम्मत है? यह अभी नया फैशन निकला है ब्राह्मण कुल में। लेकिन है उल्टा फैशन। तो इसका समाप्ति समारोह करने की हिम्मत है? जो कहते हैं कोशिश करेंगे, ट्राई ट्राई करने वाले हाथ उठाओ। अभी देखना बापदादा सेन्टर का नाम एनाउन्स करेगा। इस सेन्टर पर इस स्थान पर यह वातावरण है। यह पसन्द है या डरेंगे? यह डर अच्छा है, कि हमारा नाम नहीं आवे। देखना हाथ उठाया है फिर धर्मराज पुरी में भी यह हाथ उठेगा। बाप का साथी धर्मराज भी देख रहा है कि सभी ने हाथ उठाया है। लेकिन फायदा किसको। जितना कायदा उतना फायदा है। जो कायदे में चलते हैं उनको स्वयं ही अन्दर ही अन्दर फायदा होता है। बाहर से कोई फायदा देवे, न देवे लेकिन जो अन्दर का हल्कापन और अन्दर की खुशी होती है वह फायदा सबसे ज्यादा है। कोई अच्छा कहे, न कहे लेकिन स्वयं में अच्छे बनने की शक्ति आ जाती है। समझा! वर्ष की रिजल्ट सुनी, अभी क्या करेंगे? स्व परिवर्तन करना। दूसरे के परिवर्तन की चिन्ता नहीं करना। इसको शुभ चिन्तक नहीं कहा जाता है। फिर कहते हैं हम चिन्ता नहीं करते हैं, शुभ चिन्तक है ना! लेकिन स्व को भूल दूसरे के शुभ चिन्तक बनना इसको शुभ चिन्तक नहीं कहा जाता है। सर्व के साथ पहले स्व होना चाहिए। स्व नहीं और सर्व के शुभ चिन्तक बनने चलो तो तीर नहीं लगेगा, सफलता नहीं मिलेगी। पहले स्व और स्व के साथ सर्व यही बापदादा का बच्चों से दिल का प्यार है। प्यार की निशानी है कि प्यार करने वाले की कोई कमी देख नहीं सकते। कोई कमी सुन नहीं सकेंगे उसको भी सम्पन्न बनायेंगे। यह है दिल का सच्चा प्यार। बापदादा दिलवाला है। इसलिए दिल का प्यार है, हर एक बच्चे को समान और श्रेष्ठ देखने चाहते हैं। हर एक बच्चे को सफलता मूर्त देखना चाहते हैं। मेहनत मूर्त नहीं , सफलतामूर्त। अच्छा। आज तो बड़ा ड़ोज मिला है। हजम करने की शक्ति है ना? घबरा तो नहीं गये कि आज बापदादा ने यह क्या कह दिया। अच्छा।

चारों ओर के सदा निश्चयबुद्धि श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा निश्चय और विजय को समानता में लाने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा स्वमान में रह स्व परिवर्तन और सर्व के परिवर्तन के यथार्थ कल्याण की भावना रखने वाली आत्माओं को, सदा बाप के समान बन प्यार का सबूत देने वाली आत्माओं को, सदा यथार्थ रूहरिहान कर बातों को समाप्त करने वाली आत्माओं को दिलवाला बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

निर्विध्न सीजन सम्पन्न हुई। साक्षी होकर भिन्न-भिन्न खेल देखने में मजा आता है ना। और खेल का अर्थ ही है भिन्नता। अगर भिन्नता नहीं हो तो खेल में मजा नहीं। इसलिए हर बात में अच्छा अच्छा कहते अच्छा बनते जाते और हर बात में अच्छाई समाई हुई जरूर होती है। चाहे सारी बात बुरी हो लेकिन एक दो अच्छाई भी जरूर होती है। वह अच्छा ही पाठ पढ़ाती है। दूसरे का आवेश हो, दूसरा आवेश कर रहा हो लेकिन आप क्या पाठ पढ़ रही हो? जितना वह आवेश करता उतना ही वह बात आपको धीरज सिखाती है। सहनशीलता सिखाती है। इसलिए कहते हैं जो हो रहा है वह अच्दा और जो होना है वह और अच्छा। अच्छाई उठाने की सिर्फ बुद्धि चाहिए बस। बुराई को न देख अच्छाई उठा लें। इससे ही नम्बर मिलते हैं ना। अच्छा।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

अपने को ज्ञान सूर्य के बच्चे मास्टर ज्ञान सूर्य समझते हो? सूर्य का कार्य क्या होता है? अन्धकार मिटाना, प्रकाश देना। ऐसे ही आप सभी भी अज्ञान अन्धेरा मिटाने वाले हो ना। कभी स्वयं भी अन्धियारे में तो नहीं आ जाते? स्वयं से अन्धियारा समाप्त हो गया। स्वयं भी आत्मा ज्योति अर्थात् प्रकाश स्वरूप है और कार्य भी है प्रकाश फैलाना। अन्धकार में मनुष्य आत्माएं भटकती हैं - यहाँ जाएं, वहाँ जाएं, यह रास्ता ठीक है, यह स्थान ठीक है वा नहीं है, भटकते रहेंगे और रोशनी में सेकेण्ड में ठिकाना दिखाई देगा। तो सभी को रोशनी द्वारा अपना निजी ठिकाना दिखाने के निमित्त हो। भटकती हुई आत्माओं को ठिकाना देने वाले। अगर कोई बहुत समय भटकता रहे और उसको कोई द्वारा ठिकाना मिल जाये तो ठिकाना दिखाने वाले को कितनी दुआएं देगा! तो आप भी जब आत्माओं को रोशनी द्वारा ठिकाना दिखाते हो, दिखाने का अनुभव कराते हो तो आत्माओं द्वारा कितनी दुआएं निकलती हैं और जिसको दुआएं मिलती हैं वह सदा आगे बढ़ता जाता है। उसकी हर बात में प्रोग्रेस होती है क्योंकि दुआएं लिफ्ट का काम करती हैं। सदा सहज आगे बढ़ते जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। इसलिए भक्ति मार्ग में भी जब भटकते-भटकते थक जाते हैं तो बाप को कहते हैं - अभी कोई दुआ करो, कृपा करो। तो अनेक आत्माओं की दुआएं आप आत्माओं को सहत उड़ती कला का अनुभव करायेंगी। एक बाप की दुआएं और आत्माओं की भी दुआएं मिलती हैं। माँ-बाप बच्चों को दुआएं करते हैं - उड़ते रहो, बढ़ते रहो। लेकिन दुआएं लेने वाले पात्र होने चाहिए। बाप सभी को देता है लेकिन लेने वाले पात्र हैं तो अनुभव करते हैं और पात्र नहीं है तो दाता देता है लेकिन लेने वाला नहीं लेता। पात्र बनने का आधार है स्वच्छ बुद्धि। स्वच्छ मन और स्वच्छ बुद्धि। जिसकी स्वच्छ बुद्धि स्वच्छ मन है वह हर समय बाप की, आत्माओं की दुआएं स्वत: ही अनुभव करते हैं। लौकिक दुनिया में भी देखो अगर कोई ऐसे समय किसको सहारा देता है, मुश्किल के समय आधार बन जाता है तो मुख से दुआएं निकलती हैं ना - तुम सदा जीते रहो, तुम सदा जीवन में सफल रहो, यह दुआएं जरूर निकलती हैं। तो अपने से पूछो कि बाप की दुआएं, आत्माओं की दुआएं अनुभव होती है या मेहनत बहुत करनी पड़ती है? बहुत सहज विधि है - दुआएं लेते जाओ और सदा भरपूर रहो। क्योंकि जिसे दुआएं मिलती हैं वह सदा भरपूर होगा, कभी अपने को खाली नहीं समझेगा। तो सभी भरपूर हो या कि कभी-कभी खाली हो जाते हो? ऐसे नहीं, यहाँ से भरपूर होकर जाओ और वहाँ जाओ तो खाली हो जाओ। 63 जन्म खाली हुए अभी इस समय भरपूर हो रहे हैं। तो भरपूर होने के समय खाली नहीं होना। भरते जाओ। भरे हुए में भरो। खाली होकर नहीं भरो। अभी खाली होन का समय समाप्त हुआ।

सभी खुश रहते हो? कैसी भी परिस्थिति आ जाए, कितना भी बड़ा विघ्न आ जाए लेकिन खुशी नहीं जाए। विघ्न आता है तो चला जायेगा। लेकिन अपनी चीज़ क्यों चली जाए। वह आया, वह जाए। अपनी चीज़ तो नहीं जाए ना। आने वाला जायेगा या रहने वाला भी चला जायेगा? तो खुशी अपनी चीज़ है। बाप का वर्सा है ना खुशी। तो विघ्न आता और चला जाता है। जब भी विघ्न आये ना तो यह सोचो यह आया है चले जाने के लिए। कोई घर का मेहमान आता है तो ऐसे नहीं, मेहमान होकर आया और सारी चीजें लेकर जाये। ध्यान रखेंगे ना। तो विध्न आया और चला जायेगा। लेकिन आपकी खुशी तो नहीं ले जाये। यदा खुशी साथ रहे। बाप है अर्थात् खुशी है। अगर पाप है तो खुशी नहीं, बाप है तो खुशी है। तो सदा खुश रहो। हर एक समझे कि मैं खुश रहने वाला हूँ। खुश रहने वाले को देख दूसरा भी खुश हो जाता है। रोने वाले को देखेंगे तो दूसरे को भी रोना आ जाता है। अच्छा।